दुनिया में हूँ, दुनिया का तलबगार नहीं हूँ
बाज़ार से गुज़रा हूँ, ख़रीदार नहीं हूँ

ज़िंदा हूँ मगर ज़ीस्त की लज़्ज़त नहीं बाक़ी
हर-चंद कि हूँ होश में, हुश्यार नहीं हूँ

इस ख़ाना-ए-हस्ती से गुज़र जाऊँगा बेलौस
साया हूँ फ़क़त, नक़्श-ब-दीवार नहीं हूँ

अफ़्सुर्दा हूँ इबरत से, दवा की नहीं हाजत
ग़म का मुझे ये ज़ोफ़ है, बीमार नहीं हूँ

वो गुल हूँ ख़िज़ाँ ने जिसे बर्बाद किया है
उलझूँ किसी दामन से मैं वो ख़ार नहीं हूँ

या रब मुझे महफ़ूज़ रख उस बुत के सितम से
मैं उसकी इनायत का तलबगार नहीं हूँ

गो दावा-ए-तक़्वा नहीं दरगाह-ए-ख़ुदा में
बुत जिससे हों ख़ुश, ऐसा गुनहगार नहीं हूँ

अफ़्सुर्दगीज़ोफ़ की कुछ हद नहीं ‘अकबर’
काफ़िर के मुक़ाबिल में भी दीं-दार नहीं हूँ!

अकबर इलाहाबादी की ग़ज़ल 'हंगामा है क्यूँ बरपा'

Book on Akbar Allahabadi:

अकबर इलाहाबादी
अकबर इलाहाबादी (1846-1921) को उर्दू में हास्य-व्यंग का सबसे बड़ा शायर माना जाता हैं। यह पेशे से इलाहाबाद में सेशन जज थे।