‘एक सलाह’ – प्रतापनारायण मिश्र

हमारे मान्‍यवर, मित्र, ‘पीयूषप्रवाह’ संपादक, साहित्‍याचार्य पंडित अंबिकादत्त व्‍यास महोदय पूछते हैं कि हिन्दी भाषा में “में से के” आदि विभक्ति चिह्न शब्‍दों के साथ मिला के लिखने चाहिए अथवा अलग। हमारी समझ में अलग ही अलग लिखना ठीक है, क्‍योंकि एक तो यह व्‍यासजी ही के कथनानुसार ‘स्‍वतंत्र विभक्ति नामक अव्‍यय है’ तथा इनकी उत्‍पत्ति भिन्‍न शब्‍दों ही से है, जैसे – मध्‍यम, मज्‍झम्, माँझ, मधि, माँहि, महिं, में इत्‍यादि, दूसरे अंगरेजी, फारसी, अरबी आदि जितनी भाषा हिंदुस्‍तान में प्रचलित हैं उनमें प्रायः सभी के मध्‍य विभक्तिसूचक शब्‍द प्रथक रहते हैं और भाग्‍य की बात न्‍यारी है नहीं तो हिन्दी किसी बात में किसी से कम नहीं है।

इससे उसके अधिकार की समता दिखलाने के लिए यह लिखना अच्‍छा है कि संस्‍कृत में ऐसा नहीं होता, सो उसकी बराबरी करने का किसी भाषा को अधिकार नहीं है, फिर हिन्दी ही उसका मुँह चिढ़ा के बेअदवी क्‍यों करे? निदान हमें व्‍यासजी की इस बात में कोई आपत्ति नहीं है।

इधर अपने भाषाविज्ञ मित्रों से एक सम्‍मति हमें भी लेनी है, अर्थात् हमारी देवनागरी में यह गुण सबसे श्रेष्‍ठ है कि चाहे जिस भाषा का जो शब्‍द हो इसमें शुद्ध-शुद्ध लिखा पढ़ा जा सकता है। अरबी के ऐन+काफ+खे+आदि थोड़े से अक्षर यद्यपि अ क ख आदि से अलग नहीं हैं, न हिन्दी में यों ही साधारण रीति से लिखे जाने पर कोई भ्रम उत्‍पन्‍न कर सकते हैं, पर यत उनका उच्‍चारण अपनी भाषा में कुछ विलक्षणता रखता है। अस्‍मात् हमारे यहाँ भी उस विलक्षणता की कसर निकाल डालने के लिए अक्षरों के नीचे बिंदु लगाने की रीति रख ली गई है। किंतु अभी अंगरेजी वाली वी V के शुद्ध उच्चारण कोई चिह्न नहीं नियत किया गया। यह क्‍यों? वाइसराय और विक्‍टर आदि शब्‍द यद्यपि हम लोग यवर्गी व अथवा पवर्गी ब से लिख के काम चला लेते हैं, यों ही हमारे बंगाली तथा गुजराती भाई भ से लिख लेते हैं और कोई हानि नहीं भी होती, किंतु अंगरेजी के रसिक यदि शुद्ध उच्‍चारण न होने का दोष लगावैं तो एक रीति से लगा सकते हैं, क्‍योंकि यह अक्षर व और ब दोनों से कुछ विलक्षणता के साथ ऊपर वाले दाँतों को नीचे के होंठ में लगा के बोला जाता है।

इसकी थोड़ी सी कसर निकाल डालने के लिए हमारी समझ में यदि ब के नीचे बिंदु लगाने की प्रथा कर ली जाए तो क्‍या बुराई है? यों ही फारसी में एक अक्षर जे है जिसका उच्‍चारण श के स्‍थान से होता है। अंगरेजी में भी प्‍लेजर आदि शब्‍द इसी प्रकार से उच्‍चरित होते हैं। इसके शुद्धोच्‍चारण के हेतु यदि “ज” के नीचे तीन बिंदु लगाने की रीति नियत कर ली जाय तो बस दुनिया भर के शब्‍दों को शुद्ध लिख पढ़ लेने में रत्ती भर कसर न रहेगी, पर यदि हमारे भाषावेत्तागण मंजूर करें।

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प्रतापनारायण मिश्र
प्रतापनारायण मिश्र (सितंबर, 1856 - जुलाई, 1894) भारतेन्दु मण्डल के प्रमुख लेखक, कवि और पत्रकार थे। वह भारतेंदु निर्मित एवं प्रेरित हिंदी लेखकों की सेना के महारथी, उनके आदर्शो के अनुगामी और आधुनिक हिंदी भाषा तथा साहित्य के निर्माणक्रम में उनके सहयोगी थे।

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