पिछले दिनों रोशनदान ग्रुप द्वारा आयोजित पोएट्री वर्कशॉप में लक्ष्मी शंकर वाजपेयी जी द्वारा हाइकु, माहिया और दोहे जैसे काव्य रूपों को संक्षेप में समझने का मौका मिला। चूंकि यह पोस्ट हाइकु समझने हेतु है तो केवल उन बातों को यहाँ रखने जा रहा हूँ जो हाइकु से सम्बन्धित हैं।
कुछ अंग्रेजी हाइकु आज से कुछ साल पहले लिखने का प्रयास कर चुका था इसलिए यह ज्ञान पहले से था कि हाइकु एक जापानी विधा है जो तीन पदों या तीन पंक्तियों में लिखी जाती है। तीन पंक्तियों की इस कविता की पहली पंक्ति में 5 शब्दांश (syllable), दूसरी में 7 और तीसरी में फिर से 5 शब्दांश होते हैं। पहली पंक्ति में शब्दों द्वारा एक चित्र खींचा जाता है। दूसरी पंक्ति में पहली पंक्ति से स्वतंत्र और भिन्न या विपरीत एक अन्य चित्र सामने आता है और फिर तीसरी पंक्ति में एक ट्विस्ट देते हुए पहली दो पंक्तियों की बातों को जोड़ दिया जाता है। यह सब विधा की 5-7-5 की सीमा के अंदर किया जाता है। अंग्रेजी हाइकु के अन्य नियम इंटरनेट पर ढूँढने से आसानी से मिल जाएँगे। इसलिए अब बात करते हैं हिन्दी हाइकु की।
लक्ष्मी शंकर वाजपेयी जी ने बताया कि हिन्दी में हाइकु को उसका भारतीयकरण करने के बाद अपनाया गया है और ऊपर लिखी सीमाओं में केवल 5-7-5 की सीमा को सुरक्षित रखा गया है और शब्दांशों के स्थान पर अक्षरों की गिनती की गयी है, अन्य कोई भी नियम अनिवार्य नहीं है। हाँ, लेकिन लिखते वक़्त अंतिम पंक्ति में चमत्कारिक रूप से पहली दो पंक्तियों का जुड़ जाना स्वाभाविक रूप से ही होने लगता है। ऐसा इसलिए क्योंकि केवल तीन पंक्तियों में एक प्रभावी कविता लिखने के लिए कम से कम शब्दों में बड़ी से बड़ी बात कह देना ज़रूरी है। बात या भाव को दोहराने की कोई गुंजाइश नहीं रहती। इसलिए अक्सर अंतिम पंक्ति में ही कविता अपना स्वरुप ग्रहण करती है और पहली दो पंक्तियों को साकार करती नज़र आती है। जो उदाहरण वर्कशॉप में दिया गया था, वही दोहरा देता हूँ। ‘जगदीश व्योम’ का यह हाइकु-
“छिड़ा जो युद्ध
रोएगी मनुजता
हँसेंगे गिद्ध।”
इसमें अक्षरों की गिनती इस प्रकार होगी-
“छिड़ा जो युद्ध
1+1 1 1+1 = 5
रोएगी मनुजता
1+1+1 1+1+1+1 = 7
हसेंगे गिद्ध”
1+1+1 1+1 = 5
ऊपर दिए गए उदाहरण में केवल 17 अक्षरों में बताया गया है कि “युद्ध मानवता का सबसे बड़ा शत्रु है और उसका परिणाम केवल विनाश है। खेद है कि यह सच युद्ध को केवल अपने देश की हार-जीत के तराजू में तोलने वालों को नहीं दिखता।” इस हाइकु के ज़रिये हिन्दी भाषा में लिखे जाने वाले हाइकु के कुछ नियम व् प्रवृत्ति इस प्रकार हैं-
- हलन्त यानी आधे अक्षरों को गिनती में नहीं लिया जाता। जैसे ‘युद्ध’ व् ‘गिद्ध’ में आधे ‘द’ की गिनती नहीं की गयी है। दूसरे शब्दों में, संयुक्त अक्षर को एक ही अक्षर गिना जाता है।
- मात्राओं को भी गिनती में नहीं लिया जाता। उदाहरण के तौर पर इसका मतलब है कि ‘ह’, ‘ही’ व् ‘हि’, सभी को केवल एक अक्षर के रूप में गिना जाएगा।
- अनिवार्य नहीं है लेकिन पहली और तीसरी पंक्ति का तुक या काफ़िया में होना प्रचलन में है। जैसा कि ऊपर दिए गए हाइकु में ‘युद्ध’ व् ‘गिद्ध’ को लेकर किया गया है। वैसे, पहली और दूसरी तथा दूसरी और तीसरी पंक्तियों में तुक मिलाते हाइकु भी नित्य ही पढ़े जा सकते हैं।
- 17 अक्षरों के एक वाक्य को 5-7-5 के क्रम में तोड़कर उसे हाइकु कह देने की सर्वथा आलोचना की गयी है, चाहे उस वाक्य में एक अच्छे हाइकु जैसा चमत्कारिक प्रभाव ही क्यों न हो! अगर ऐसा कुछ है तो उसे किसी अन्य विधा की संज्ञा दी सकती है, हाइकु की नहीं।
भारत में हाइकु लाने का श्रेय रविंद्रनाथ ‘ठाकुर’ को जाता है जिन्होंने अपनी जापान यात्रा के बाद वहाँ की कविता ‘हाइकु’ से भारत के साहित्य क्षेत्र को अवगत कराया। उन्होंने ही किसी भी भारतीय भाषा में लिखे जाने वाले सबसे पहले हाइकु ‘मात्सुओ बाशो’ के दो हाइकुओं के अनुवाद के रूप में हमें दिए थे-
1)
“पुरोनो पुकुर
ब्यांगेर लाफ
जलेर शब्द”
हिन्दी में:
“पुराना तालाब
मेंढक की कूद
पानी की आवाज”
2)
“पचा डाल
एकटा को
शरत्काल”
हिन्दी में:
“सूखी डाल
एक कौआ
शरत्काल”
उसके बाद अज्ञेय से लेकर गोपालदास ‘नीरज’ और कुँअर बेचैन जैसे बड़े कवियों ने भी हाइकु विधा में अपना योगदान दिया है। हिन्दी के कुछ उत्कृष्ट हाइकु यहाँ साझा किए जा रहे हैं.. आशा है कि आप पढ़ेंगे और हिन्दी की इस अपेक्षाकृत नई विधा में हाथ आजमाएँगे-
अज्ञेय:
रूप तृषा भी
(और काँच के पीछे)
हे जिजीविषा।
गोपालदास ‘नीरज’:
वो हैं अकेले
दूर खड़े होकर
देखें जो मेले
कुँवर बेचैन:
तटों के पास
नौकाएं तो हैं, किन्तु
पाँव कहाँ हैं?
कमलेश भट्ट ‘कमल’:
फूल सी पली
ससुराल में बहू
फूस सी जली।
कुँवर दिनेश:
तारों का मेला
रात है जगमग
चाँद अकेला
त्रिलोक सिंह ठकुरेला:
कोसते रहे
समूची सभ्यता को
बेचारे भ्रूण
जगदीश व्योम:
इर्द गिर्द हैं
साँसों की ये मशीने
इंसान कहाँ!
कमल किशोर गोयनका:
कोंपल जन्मी
डरी-डरी सहमी
हिरोशिमा में।
[…] हाइकु विधा और उसकी संरचना समझने के लिए… […]
Is there a reason I cannot right click an select the text?
Anyway, you write
Can you provide a source for that? I see Tagore has published Japan Jatri about his multiple visits to Japan from 1915-1929 but nowhere do I find that he translated these two haikus.
जी, राइट क्लिक को बंद रखा गया है।
‘जापान-यात्री’ में नहीं, लेकिन हाइकु के बारे में पढ़ते-खोजते समय इस संदर्भ में विकिपीडिया और कविता कोश समेत कुछ अन्य ब्लॉग्स पर भी यही पाया गया था कि टैगोर ने ही 1916 में भारत को सर्वप्रथम हाइकु का परिचय दिया था। इसी के चलते 2016 को हाइकु शताब्दी वर्ष माना गया और कई उत्सव भी किए गए। यूँ लिखित में इन दो हाइकु का ज़िक्र कविता-कोश के हाइकु परिचय से प्राप्त हुआ।
Bahut shukriya is article ke liye.. jin asaan shabdo se aapne haiku ke baare me bataya kaafi log usse haiku ko likh payenge..
Shukriya Nazre bhai..
लाभप्रद जानकारी । तुम्हारा परिचय उसकी सच्चाई और सरलता भी सराहनीय है ।
बहुत बहुत शुक्रिया नरेंद्र भाई 🙂