जब पानी की एक बूँद पर,
बनेगा सूखे का साम्राज्य,
क्या तब मिटेगी ,
तुम्हारे अधरों की प्यास?
या तब भी रह जायेगा अधूरा,
हमारा प्रेम परिचय!
ओस की बूंदों पर,
तुम्हारे कितने प्रतिबिम्ब बने थे,
पर मेरा हृदय तो एकल था,
जिसमें सिर्फ तुम थे, तुम्हारे प्रतिबिम्ब नहीं।
जब चिरागों की रौशनी पर बनेगा,
अंधेरों का साम्राज्य,
क्या तब होंगे हम एकाकार,
एक दूसरे में?
या तब भी रह जायेगा अधूरा,
हमारा प्रेम परिचय!
एक शताब्दी को तुमने,
एक क्षण में बदल दिया,
जिस क्षण की प्रतीक्षा शायद तुम्हें भी थी।
ढाई आखर ही सही, पर तुम्हें बोलना था कुछ,
चीखती आवाज़ों के बीच,
जब स्थापित होगा मौन का साम्राज्य,
क्या तब करोगे प्रेम का,
इज़हार हमसे?
या तब भी रह जायेगा अधूरा,
हमारा प्रेम परिचय!