‘Maa Aur Beti’, a poem by Joy Goswami

एक रास्ता जाता है उनींदे गाँवों तक
एक रास्ता घाट पार कराने वाली नाव तक
एक रास्ता पंखधारी देह तक
माँ, मुझे सारे रास्तों के बारे में पता है।

दिन ठहर जाता है पेड़ के नीचे
और रात परियों के घर
सीढ़ियाँ फलाँगती आती हैं धूप और रोशनी
माँ, अब मैं तमाम उजालों को झेल सकती हूँ।

यह आकाश दरक उठता है रह-रहकर
यह आकाश खुद को गँवा बैठता है बादलों में
माँ, मैं तारों की शक्ल में,
सारे आकाश में छिटक गयी हूँ-
और इस आकाश में चल रही है एक निर्बन्ध नाव।

माँ, मेरे हिस्से आया है एक पोखर पानी
जिसमें डूब-तिर रहा है सारा गाँव।

“चल, परे हट मुँहजली, कुलच्छनी,
तू पड़ गयी न ढाई आखर के भँवर में!”

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Book by Joy Goswami:

जय गोस्वामी
जय गोस्वामी बंगाली भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक कविता–संग्रह 'पागली तोमार संगे' के लिये उन्हें सन् 2000 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। जय गोस्वामी की कविता 'माँ और बेटी' उसके प्रकाशित वर्ष की सर्वोत्तम बांग्ला कविताओं में से एक थी।