माँ तुम क्या हो
एक स्वप्न हो, एक विचार हो
कल्पना हो या साकार हो
श्रद्धा हो, अर्चना हो
दया हो, वंदना हो
माँ तुम क्या हो
अपरिमित हो, अनंत हो
सागर हो या सुमन हो
शीत में हो धूप तुम, धूप में शीतल बयार हो
माँ तुम क्या हो
ममता की ओट हो, मृदुलता की सीमा हो
धीरज का प्रतिबिंब हो, भगवत स्वरूप हो या स्वयं भगवान हो
माँ तुम क्या हो
चोट पर मरहम हो, मरण में जीवन हो
जीवन में बसंत हो
एक जीवंत गीत हो, सबसे सच्चा मीत हो
माँ तुम क्या हो
शब्द हो, लेखनी हो
आदि हो और अंत हो
सुख की सीमा तपस्या का तेज हो
माँ तुम क्या हो
काबिल नहीं मैं, जो लिख सकूँ तुम्हें
तुम वह पावन चरित्र हो।

अनुपमा मिश्रा
My poems have been published in Literary yard, Best Poetry, spillwords, Queen Mob's Teahouse, Rachanakar and others