विवरण: कई बरस पहले नवंबर की एक सर्द शाम में एक लड़का एक जोड़ी आंखों का तआकुब करता हुआ अपने आप से बड़ी दूर निकल गया था कि दिल की सरजमीन पर उन आंखों के नक्श ए पा बड़े हसीन मालूम होते थे। बहुत वक्त बाद उसे यह मालूम हुआ कि जिन्हें वह उन आंखों के नक्श ए पा समझा था वह तो हवा के कदमों के निशान थे। हवाऐं… बिना रुके चलते रहना जिनका मुकददर है। लेकिन उसे जिस वक्त यह बात मालूम हुई उस वक्त वह रात की सरहद में दाखिल हो चुका था.. रात जिसकी तीरीकी ने खुशी और गम, उमीद और नाउमीदी, और ऐसी तमाम कैफियात को आपस मे इस तरह हमरंग कर दिया कि उनकी अलग शिनाख्त नामुमकिन हो गई. और जैसे ही यह बात उस पर अयां हुई उफक पर सफेदी नजर आने लगी। वह रात गुजर चुकी थी और सहर की रौशनी के साथ उसकी जिंदगी जिसकी आंखें उन आंखों से कहीं ज्यादा खूबसूरत थीं, खड़ी मुस्कुरा रही थी.. वह मुस्कुराया और उस रौशनी से यूं मुखातिब हुआ… सुब्ह बखैर ज़िन्दगी… (अमीर इमाम की वॉल से साभार)
- Paperback: 144 pages
- Publisher: Rektha Books; 1 edition (2018)
- Language: Hindi
- ISBN-10: 8193440935
- ISBN-13: 978-8193440933
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