Tag: A poem on Women Empowerment
मैं मार दी जाऊँगी
मेरी आग बरसाती आँखें
कसती भिंचभिंचाती मुठ्ठियाँ
कँपकँपाते-फरफराते होंठ
थरथराता-क्रोधित शरीर
जवाब दे बैठता है,
जब खण्डहरों में चीख़ते हैं
मासूम आहत परिन्देसियासियों, सत्ताधारियों की
इमारतों में क़ैद
बिलखती-तड़पती हैं
भुखमरी, बेचारगी, लाचारी...
सुनो लड़की
सुनो लड़की!
शक्लें छिपाए और
आँखें गड़ाए हुए
गिद्ध जैसे निशाना साधे
बैठे हैं कई लोग यहाँ।
तुम छुपना मत
आँखें नीची मत करना,
दुपट्टा कहीं खिसका तो नहीं,
इसकी भी परवाह...
आदत
'Aadat', a poem by Archana Vermaमरदों ने घर को
लौटने का पर्याय बना लिया
और लौटने को मर जाने का
घर को फिर उन्होंने देखा ही नहीं
लौटकर...