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Amir Khusrow

ज़े-हाल-ए-मिस्कीं मकुन तग़ाफ़ुल

ज़े-हाल-ए-मिस्कीं मकुन तग़ाफ़ुल दुराय नैनाँ बनाए बतियाँ कि ताब-ए-हिज्राँ नदारम ऐ जाँ न लेहू काहे लगाए छतियाँ शाबान-ए-हिज्राँ दराज़ चूँ ज़ुल्फ़ ओ रोज़-ए-वसलत चूँ उम्र-ए-कोताह सखी पिया...
Amir Khusrow

हिन्दी मुकरी

चार पंक्तियों की एक पहेली है जो एक लड़की अपनी किसी दोस्त से बूझती है। वो लड़की अपने प्रीतम यानि लवर को याद करते हुए तीन पंक्तियाँ कहती है और जब चौथी पंक्ति में उसकी दोस्त पूछती है कि क्या तुम अपने साजन की बात कर रही हो तो लड़की झट मुकर जाती है और किसी अन्य चीज़ का नाम ले लेती है, लेकिन एक ऐसी चीज़ का नाम जो पहली तीन पंक्तियों में उसके द्वारा किए गए उसके साजन के वर्णन से मिलती हो..।
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