Tag: Anita Verma
देह
एक देह को चलते या जागते देखना किसी आश्चर्य से कम नहीं
जो गंध और स्पर्श का घर होते हुए भी उसके पार का माध्यम...
देखते हुए
देखना, सोचना, समझना
यही मैंने सीखा है
यही मेरे मनुष्य होने की विशेषता है
पर कई बार देखते हुए सोचना कठिन होता है
और सोचते हुए समझना भी...
जो कुछ है
अगर तुम समझते हो
कि तुमने सब कुछ जान लिया है
तो यह तुम्हारा भ्रम है
उम्र अनुभव देती है, पड़ताल नहीं
अभी तुमने जाना नहीं है
चीज़ों को...
अभी
अभी मैं प्रेम से भरी हुई हूँ
पूरी दुनिया शिशु-सी लगती है
मैं दे सकती हूँ किसी को कुछ भी
रात-दिन वर्ष-पल अनन्तअभी तारे मेरी आँखों में...
स्त्री का चेहरा
इस चेहरे पर जीवन-भर की कमाई दिखती है
पहले दुःख की एक परत
फिर एक परत प्रसन्नता की
सहनशीलता की एक और परत
एक परत सुन्दरता
कितनी किताबें यहाँ इकट्ठा...