Tag: Ashish Bihani
सुरसा के मुख से: स्क्रीन
समक्ष खड़े शख्स के शब्दों से भागते हुए
उसके चेहरे के उतारों और चढ़ावों पर निगाह सरकाते हुए
तुम धीरे-धीरे नीचे आते हो
और अन्यमनस्कता को बड़े...
सुरसा के मुख से: भाईसाब
भाईसाब तुम तुर्रमखां नहीं कोई
तुम्हारे जैसे तराशे नक्श फैक्ट्री में बनकर आते हैं
मेरी दुकान पर लाइन से खड़े होकर मुंहबोली रक़म देकर फ्रूट खरीदते...
सुरसा के मुख से: खड़ताल
सुबह-सुबह वो नहलाये ताज़ातरीन बाल फैलाए
खड़ताल बजाती हुई निकलती है
गाँव की पहली आँख खुलने से भी पहले
पतली कच्ची कीचड़ लदी गलियों के
उबकाहट भरे जंजाल...
सुरसा के मुख से: दबोच
एक पथरीले चेहरे वाली आग चबाती है किसी झोंपड़ी को
कर्णभेदी शोर के साथ
हवाओं को छाती पीटकर ललकारते हुए
कोई बाघ गर्दन दबाता है अपने शिकार...
सुरसा के मुख से: बोर
'Sursa Ke Mukh se: Bor', a poem by Ashish Bihaniआँखों में रोष भरे
वो कोशिश करता है
एक चुटकुला सुनाने की
और सभा की चुप्पी उसे नागवार...