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किताब
पलटती हूँ कभी जब
सफ़हे क़िताब के
हर्फ़ दर हर्फ़
खुलती जाती है
कायनात
और मैं
खो जाती हूँरोज़ शब
होता है उजाला
मेरी क़िताब के
माहताब से
अल्फ़ाज़ बना देते है
नींद का बिछौना
और...
नई हिन्दी की शोस्टॉपर – रवीश कुमार की ‘इश्क़ में शहर होना’
मैं आज स्माल टाउन-सा फ़ील कर रहा हूँ...
और मैं मेट्रो-सी।पढ़ने में सामान्य लेकिन शिकायत और शरारत दोनों दिखाती इन पंक्तियों से शुरू होने वाली...