Tag: Bourgeoisie
इस गली के मोड़ पर
इस गली के मोड़ पर इक अज़ीज़ दोस्त ने
मेरे अश्क पोंछकर
आज मुझसे ये कहा—
यूँ न दिल जलाओ तुम
लूट-मार का है राज
जल रहा है कुल...
जाहिल के बाने
मैं असभ्य हूँ क्योंकि खुले नंगे पाँवों चलता हूँ
मैं असभ्य हूँ क्योंकि धूल की गोदी में पलता हूँ
मैं असभ्य हूँ क्योंकि चीरकर धरती धान...
पानी की तरह इज़्ज़त
'Pani Ki Tarah Izzat', a poem by Rahul Boyalकार वाले साहब तो दुत्कार कर चले गये
कि हमारी छातियों में ईर्ष्या के पत्थर गड़े हैं
अब...