Tag: Dalit Kahani
जब मैंने जाति छुपाई
"महार होने से क्या हुआ? दीवार के सामने पड़ी टट्टी-पेशाब की गन्दगी साफ़ नहीं करूँगा।"
"तुम्हें करनी होगी और बराबर साफ़ करनी होगी।"
अंगारा
"हरखू और झमकू को कहते कि अपनी बिटिया को सँभालकर रखे तो उल्टे हमारा ही मुँह बन्द करते कि मेरी लड़की तुम्हारी आँखों में क्यों चुभ रही है?"
"अब भुगतो!"
सुमंगली
"ग़रीबों का जन्म ही इसलिए हुआ है। हमारी मेहनत से अट्टलिकाएँ तैयार होती हैं और उसके पुरस्कार के बदले में हमारे शरीर को रौंदा जाता है।"
उम्मीद अब भी बाकी है
"तुम्हारी माँ उतनी बुरी नहीं है", बाबा ने उस दिन शाम में कहा, "अभी भी वह हमसे उतना ही प्यार करती है, दो-चार रुपये के लिए उस पंजाबी से सम्बन्ध बनाया हो, यह अलग बात है।"
वैतरणी
मंगतू अपनी बस्ती में एक नल लगाने का आग्रह अपने क्षेत्र के विधायक से करता है, लेकिन उसकी इस फ़रियाद के पूर्ण होने के रास्ते में रुकावट हैं वैतरणी के तट पर खड़े विधायक के स्वर्गीय बड़े भैया!
लटकी हुई शर्त
"दुसाध को लड़की की शादी करनी है तो दुसाध ही खोजेगा। चमार को लड़की की शादी करनी है तो चमार ही खोजेगा। फिर, यह 'हरिजन-हरिजन' करने से इन बारीकियों का पता कैसे चलेगा?"
परिवर्तन की बात
“हाँ भैया, गाय और अपनी माता में कोई फर्क नहीं होता।”
“तो तुम इसका माँ की तरह दाह-संस्कार क्यों नहीं करते?”
“साले खाल खींचा, यदि एक भी शब्द और आगे कहा तो पूरी लाठिया मुँह में घुसेड़ दूँगा।”
“तुम्हीं तो मरे जानवर उठाने का काम करते आए हो। तुम नहीं करोगे, तो कौन करेगा इस काम को?”
“कोई भी करे, अब हम नहीं करेंगे।”