Tag: Doodhnath Singh

Doodhnath Singh

क्रूरता

1 मैंने तुम्हें अपनी बाँहों में निश्चित सोते हुए देखा है। जब वह मणि मुझसे छीन ली गई मेरी आँखों से रोशनी बन तुम्हीं टपक रही थीं— यह...
Doodhnath Singh

जब मैं हार गया

जब मैं हार गया सब कुछ करके मुझे नींद आ गई जब मैं गुहार लगाते-लगाते थक गया मुझे नींद आ गई जब मैं भरपेट सोकर उठा हड़बोंग में फँसा,...
Doodhnath Singh

पिछली रात की वह प्रात

तुम्हारी आँख के आँसू हमारी आँख में तुम्हारी आँख मेरी आँख में तुम्हारा धड़कता सौन्दर्य मेरी पसलियों की छाँव में तुम्हारी नींद मेरे जागरण के पार्श्व में तुम्हारी करवटें...
Doodhnath Singh

एक आँख वाला इतिहास

मैंने कठैती हड्डियों वाला एक हाथ देखा— रंग में काला और धुन में कठोर। मैंने उस हाथ की आत्मा देखी— साँवली और कोमल और कथा-कहानियों से भरपूर! मैंने पत्थरों...
Doodhnath Singh

ओ नारी

मैं तुम्हारी पीठ पर बैठा हुआ घाव हूँ जो तुम्हें दिखेगा नहीं, मैं तुम्हारी कोमल कलाई पर उगी हुई धूप हूँ अतिरिक्त उजाला – ज़रूरत नहीं जिसकी, मैं...
Doodhnath Singh

सारे काम निपटाकर तुम्हें याद करने बैठा

सारे काम निपटाकर तुम्हें याद करने बैठा। फ़ुर्सत ही नहीं देते लोग तुम्हारे चेहरे पर नज़र टिकायी नहीं कि कोई आ गया 'क्या कर रहे हैं?' 'कुछ भी तो...
Doodhnath Singh

अम्माएँ

“अपनी अम्माओं से बोलो कि बाहर आकर नाम-पता लिखाएँ। अपनी अम्माओं से बोलो कि डरें नहीं। हम लोग सरकारी आदमी हैं।” बीहड़ में जनगणना वाले पहुंचे तो एक टूटे हुए घर के आगे बस कुछ बच्चे मिले, जिन्होंने बताया कि अन्दर उनकी 'अम्माएँ' हैं, और कोई मरद-मानुस नहीं.. उन 'अम्माओं' में से भी केवल एक अम्मा बाहर आयीं और बाकियों को बुलाने पर कहने लगी- 'थोड़ी देर लगेगी'.. क्यों उन बच्चों की केवल अम्माएँ थीं? क्यों वो सब एक साथ बाहर नहीं आ रही थीं? उस बीहड़ के आदमी कहाँ थे? पढ़िए दूधनाथ सिंह की इस कहानी में!
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