Tag: Manish Kumar Yadav
लगभग विशेषण हो चुका शासक
किसी अटपटी भाषा में दिए जा रहे हैं
हत्याओं के लिए तर्क
'एक अहिंसा है
जिसका सिक्का लिए
गांधीजी हर शहर में खड़े हैं
लेकिन जब भी सिक्का उछालते...
वितानमय
निष्ठुरताओं से घिरा भयभीत मन
धैर्य का अभिनय कर रहा है
अवमुक्त होने के सन्दर्भ में
कुछ स्मृतियाँ, कुछ आशंकाएँ बची हैं
आगंतुक पत्र के साथ
चपरासी
शहर से शहर...
स्मृतियाँ एक दोहराव हैं
उत्कण्ठाओं के दिन नियत थे
प्रेम के नहीं थे
चेष्टाओं की परिमिति नियत थी
इच्छाओं की नहीं थी
परिभाषाएँ संकुचन हैं
जो न कभी प्रेम बांध पायीं
न देह
स्मृतियाँ एक...
कजरी के गीत मिथ्या हैं
अगले कातिक में मैं बारह साल की हो जाती
ऐसा माँ कहती थी
लेकिन जेठ में ही मेरा
ब्याह करा दिया गया
ब्याह शब्द से
डर लगता था
जब से...