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आदमी है बन्दर
'Aadmi Hai Bandar', a poem by Jitendraआदमी है बन्दर
बाहर से जाने कैसा
और जाने कैसा अन्दर!
तरह-तरह से नाच रहा है आकाओं के आगे
उछल-कूदकर दिखा रहा...
तुम बिल्कुल हम जैसे निकले
तुम बिल्कुल हम जैसे निकले
अब तक कहाँ छिपे थे भाई
वो मूरखता, वो घामड़पन
जिसमें हमने सदी गँवायी
आख़िर पहुँची द्वार तुम्हारे
अरे बधाई, बहुत बधाई।प्रेत धर्म का...
स्त्रीधन
भारतीय समाज में बेटी की शादी या बहू के आगमन की तैयारियाँ सालों पहले से शुरू हो जाती हैं, लेकिन इन 'भौतिक' दिखने वाली तैयारियों के पीछे उन्हें क्या-क्या संजोकर रखने के लिए दे दिया जाता है, इसका अंदाज़ा खुद यह समाज आज तक नहीं लगा पाया!