तुम बिल्‍कुल हम जैसे निकले
अब तक कहाँ छिपे थे भाई
वो मूरखता, वो घामड़पन
जिसमें हमने सदी गँवायी
आख़िर पहुँची द्वार तुम्‍हारे
अरे बधाई, बहुत बधाई।

प्रेत धर्म का नाच रहा है
क़ायम हिंदू राज करोगे?
सारे उल्‍टे काज करोगे!
अपना चमन ताराज करोगे!
तुम भी बैठे करोगे सोचा
पूरी है वैसी तैयारी
कौन है हिंदू, कौन नहीं है
तुम भी करोगे फ़तवे जारी
होगा कठिन वहाँ भी जीना
दाँतों आ जाएगा पसीना
जैसी तैसी कटा करेगी
वहाँ भी सबकी साँस घुटेगी
माथे पर सिंदूर की रेखा
कुछ भी नहीं पड़ोस से सीखा!
क्‍या हमने दुर्दशा बनायी
कुछ भी तुमको नज़र न आयी?
कल दुःख से सोचा करती थी
सोच के बहुत हँसी आज आयी
तुम बिल्‍कुल हम जैसे निकले
हम दो क़ौम नहीं थे भाई।

मश्क़ करो तुम, आ जाएगा
उल्‍टे पाँव चलते जाना
ध्‍यान न मन में दूजा आए
बस पीछे ही नज़र जमाना
भाड़ में जाए शिक्षा-विक्षा
अब जाहिलपन के गुन गाना।
आगे गड्ढा है, यह मत देखो
लाओ वापस गया ज़माना
एक जाप-सा करते जाओ
बारम्बार यही दोहराओ
कैसा वीर महान था भारत
कैसा आलीशान था भारत
फिर तुम लोग पहुँच जाओगे
बस परलोक पहुँच जाओगे
हम तो हैं पहले से वहाँ पर
तुम भी समय निकालते रहना
अब जिस नरक में जाओ वहाँ से
चिट्ठी-विठ्ठी डालते रहना।

फ़हमीदा रियाज़ की नज़्म 'ज़बानों का बोसा'

Book by Fahmida Riaz:

फ़हमीदा रियाज़
फ़हमीदा रियाज़ उर्दू की प्रमुख शायरा एवं लेखिका हैं। इनका जन्म 28 जुलाई 1946 को मेरठ में हुआ। बाद में इनका परिवार पाकिस्तान जाकर बस गया। गोदावरी, ख़त-ए-मरमुज़ इनके प्रमुख संग्रह हैं। 1980 के दौर में पाकिस्तान के राष्ट्रपति जनरल जिया उल हक के शासन में उनको और उनके पति को निर्वासन के बाद भारत में शरण लेनी पड़ी थी।