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राहुल सांकृत्यायन – ‘तुम्हारी क्षय’
राहुल सांकृत्यायन की किताब 'तुम्हारी क्षय' से उद्धरण | Quotes from 'Tumhari Kshya', a book by Rahul Sankrityayan
चयन: पुनीत कुसुम
"उन्हीं के ख़ून से मोटी...
तुम्हारी जोंकों की क्षय
जोंकें? — जो अपनी परवरिश के लिए धरती पर मेहनत का सहारा नहीं लेतीं। वे दूसरों के अर्जित ख़ून पर गुज़र करती हैं। मानुषी...
तुम्हारी जात-पाँत की क्षय
हमारे देश को जिन बातों पर अभिमान है, उनमें जात-पाँत भी एक है। दूसरे मुल्कों में जात-पाँत का भेद समझा जाता है भाषा के...
तुम्हारे सदाचार की क्षय
व्यभिचारसद्-आचार अर्थात श्रेष्ठ पुरुषों का आचार। श्रेष्ठ किसे कहते हैं? क्या श्रेष्ठ की कोटि में उस ग़रीब की गिनती हो सकती है जो ईमानदारी...
तुम्हारे भगवान की क्षय
लड़का माँ के पेट से ईश्वर का ख़याल लेकर नहीं निकलता। भूत, प्रेत तथा दूसरे संस्कारों की तरह ईश्वर का ख़याल भी लड़के को...
तुम्हारे धर्म की क्षय
वैसे तो धर्मों में आपस में मतभेद है। एक पूरब मुँह करके पूजा करने का विधान करता है, तो दूसरा पश्चिम की ओर। एक...
तुम्हारे समाज की क्षय
मनुष्य सामाजिक पशु है। मनुष्य और पशु में अन्तर यही है कि मनुष्य अपने हित और अहित के लिए अपने समाज पर अधिकतर निर्भर...