Tag: Umashankar Joshi
आत्मसंतोष
नहीं, नहीं, अब नहीं हैं रोनी हृदय की व्यथाएँजो जगत् व्यथा देता है, उसी जगत् को अब
रचकर गाथाएँ व्यथा की वापस नहीं देनी हैं।
दुःख...
क्षमा-याचना
'Kshama Yachana', a poem by Umashankar Joshiप्रिये,
माफ़ करना यह
कि कभी दुलार से नहीं पुकारा तुझे।
बहुत व्यस्त मैं आज
अपने दोनों के अनेक मिलनों की कथा...