Tag: Yogendra Gautam
पुनर्जन्म
विस्मृत हो चुके किसी जगत के स्थान पर
एक नया विश्व खोजने चलता हूँ और
खो जाता हूँ समय के एक ऐसे मैदान में
जहाँ से बूझ...
तुम पुकार दो
दिन ढला
पक्षी लौट रहे अपने-अपने नीड़
सूर्य का रथ अस्ताचल की ओर,
वह नहीं आयी।
उसकी प्रतीक्षा में फिर फिर लौटा उसका नाम
कण्ठ शून्य में पुकार, निराशा...
एकान्त के स्पर्श
दूर से आती आवाज़,
जिसके स्वर स्पष्ट नहीं,
बस एक गूँज है—हवा में तैरती हुई।
लगता है जिस हवा पर यह सवार हो आती है,
उसी पर लौट...
गिरना
आपाधापी में गुज़रते समय से गुज़रकर
लगता है कि हम मनुष्य नहीं रहे
समय हो चले हैं
हम बस बीत रहे हैं—लगातार।
हमारा बीतना किसी निविड़ अन्धकार में...