यह कहानी है ‘दमहाबाग़’ के एक दादाजी, उनकी भैंस ‘बिजली’ और उनकी ठगी की। भैंस का नाम बिजली यूं पड़ गया कि जब दादा उसे ख़रीद कर लाये तो एक रोज़ हस्बे-मामूल ‘दरगांव’ के पास उसे चरा रहे थे, चरते-चरते वह जैसे ही तालाब के पास पहुंची तो भाग खड़ी हुई। दादा भी झट से अपना तहमद उठा कर, चश्मा संभालते हुए, डंडा लेकर यह बकते हुए उसके पीछे भागे कि – “देखौ तौ अइका! ससुरी बिजली की तरह भागि रही।” बस उसी दिन से उसका नाम बिजली पड़ गया।

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दादा का पोता कई महीनों बाद हॉस्टल से घर आया था। दादा ख़ुशी-ख़ुशी उसे घुमाने ‘झबरा’ ले गए। झबरा वह जगह है जहां दादा गायें, भैंसें, बकरियां वगैरह पालते थे। दादा बड़े चाव से अपने पोते को बताते कि कौन-सी गाय-भैंस कब ख़रीदी और कितना दूध देती है वगैरह-वगैरह।

सूरज ढलने को आया तो दादा ने अपने नौकर टुन्नू को आवाज़ लगाई कि – “जाओ पड़वा खोल देओ तौ भैंसी लगाए ली जाए।” टुन्नू ने तुरंत हुक्म की तामील की और महफ़िल की तैयारी में लग गया। जी हां, महफ़िल! जो हर शाम दूध दुहने के बाद दादा, उनके कुछ हमउम्र दोस्त और कभी-कभार कुछ नौजवान जो दूध लेने आते थे, उनकी होती है। जिसमें ‘रिपब्लिक’ जैसे डायलॉग्स चलते हैं।

दूध दुहने के बाद दादा सीधे अपने तख़्त पर विराजे और पहला कश लेते ही सीधे राजनीति पर तोप दाग़ी। उनके दूसरे साथी जो कांग्रेसी थे, उन्होंने दादा का विरोध किया और अपनी बात रखी। फ़िर तीसरे साथी जो नेताजी के सगे हैं, उनकी बड़ाई में लग गए।

तभी टुन्नू की आवाज़ आई – “तम्बाकू महंगी दिया है इस बार।” दादा ने झल्लाते हुए कहा – “अरे लाओ यार! साला हर आदमी तो यहां ठगने में लगा हुआ है। आज के ज़माने में तो कोई चीज़ पेवर (प्योर/शुद्ध) नहीं है। पहले आटा-तेल और अब तम्बाकू को भी नहीं छोड़ा।”

पहले नौजवान ने कश लेते हुए बात आगे बढ़ाई – “अरे दादा, ये तो कुछ नहीं! सबसे बड़े ठग तौ ई स्कूल वाले हैं। अगर टीचर स्कूल मा अच्छे से पढ़ावै तौ क्या अलग-से ट्यूशन की जरूरत है? मगर ये टीचर लोग स्कूल में भी पढ़ाते हैं लेकिन वहां ठगने से मन नहीं भरता तो मां-बाप से कहिते हैं कि बच्चे की कोचिंग हमारे पास लगवा दीजिए। बाक़ी आपका लड़का दिमागी तो बहुत है। बताओ इतने पूज्य काम को भी इन लोगों ने बदनाम कर दिया है।”

दूसरा नौजवान भी बढ़कर कहता है – “हां और सबसे ज़्यादा ठगी करती हैं ये राजनीतिक पार्टियां। हर पांच साल बाद पब्लिक को ठगने आती हैं। सालों का मन नहीं भरता। और दादा तुम मिलावट की बात कर रहे हो, आज के ज़माने में तो पानी भी शुद्ध नहीं है। उसको भी धंधा बना दिया है। मानो ऊपर वाले का कोई ख़ौफ़ है ही नहीं!”

दादा बात काटते हुए कहते हैं – “अरे भईया हम तो पेवर दूध ही देते हैं। इतने लोग आते हैं कि मना करना पड़ता है।” सब लोग एक आवाज़ में बोल उठते हैं – “अरे दादा तुमरी बात अलग है।”

हुक्के की आग ख़त्म होते-होते चर्चा भी ख़त्म हो जाती है। बाहर निकलकर जब दोनों नौजवान झबरा से दूर निकल जाते हैं तो हुक्के का असर कुछ कम होता है और वे बातें करते हुए आगे बढ़ जाते हैं – “अबे दादा बहुत पकाते हैं यार। बेफ़ालतू की बातें किया करते हैं। दूध भला प्योर देते हैं ये!”

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दादा का पोता इस पूरी चर्चा का मूकदर्शक बना रहा। चलने का समय हुआ तो दादा ने उसे आवाज़ दी और दोनों घर की ओर चल पड़े। रास्ते में एक गांव वाले ने दादा से पूछ लिया – “अरे दादा तुमरी भैंसी कितना दूध दे देती है?” दादा बोले – “दे देती है भईया सुबह-शाम आठ-दस लीटर।” “अच्छा!” कहकर वह आगे बढ़ गया और मुंह बिसोरकर बोला – “बुढ़ऊ का मुंह देखौ, आठ-दस लीटर!”

पोता झट दादा से बोला – “दादा आपने तो छः लीटर बताया था, तो उस से झूठ क्यों बोला?”

दादा – “अरे ये सब तुम्हारे मतलब की बातें नहीं हैं। तुम मज़े करो। जाओ गुप्ता के यहां से टॉफ़ी कमप्ट ले लो।”

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घर पहुंचकर दादा अपने बेटे को बताने लगे कि – “अगले महीने खद्दर का मेला है, वहीं भैंस को बेच देंगे। वैसे भी इसको बहुत समय हो गया है। और हां! टुन्नू से कह देना कि भैंस को एक दिन पहले से लगाना बंद कर दे और ख़ूब क़ायदे से नहलाकर तेल लगा दे ताकि जल्दी बिक जाए।”

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एक महीने बाद दादा भैंस को अपने मनमुताबिक रेट पर बेंच कर हंसी-खुशी घर लौटे। घर पहुंचकर उन्होंने सामान उठाने के लिए अपने बेटे को आवाज़ दी। वह आया और बोरी उठाते हुए उसने पूछा – “ये क्या ले लिए?” दादा बोले – “अरे कुछ नहीं, वही प्याज़, लहसुन, घुइयां हैं और का!” “और ये हाथ में क्या पकड़े हैं?”, बेटे ने पूछा। “ये देसी अंडे हैं। सस्ते मिल रहे थे तो ख़रीद लिए।”, दादा शॉल हटाकर विजयी भाव से बोले। बेटे ने झट से उनसे अंडे लिए और एक-एक अंडे को टटोलने लगा। कुछ देर की जांच-पड़ताल के बाद वह हंसते हुए बोला – “अरे बुढ़ऊ! सिर्फ़ पहली दो कैरैट सही हैं, बाक़ी सब रंग वाली हैं। एक गैंग है अंडे वालों की जो फार्मी अंडों पर रंग चढ़ाकर देसी अंडे कहकर बेचती है। बुढ़ऊ जाओ! तुमका ठग लिहिस।”

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