बच्चों की हर गलती
में संस्कार माँ-बाप के बुरे नहीं
होते, एक समय के बाद ये
समाज भी संस्कार प्रदान करने
लगता है…
एक उम्र के बाद बच्चे
जन्म देने लगते हैं अपने
विचारों को या यूँ कहें कि उन
पर अमल करना शुरू कर देते हैं..
हर रोज़ किसी सड़क पर,
कोई मिल जाता है ऐसा जो कि
उस विचार रूपी पौधे को
सींचता है अपने गंदे विचारों
के पानी से, देता है उसमें
सामाजिक बुराइयों की
खाद और मिलती है उसे
बुझे हुए सूर्य की किरणें..
वो किरणें, वो पोषण मजबूर
करते हैं उस पौधे को ऐसे फल उगाने
पर जिसके कण तक उसके बीज
में नहीं थे…

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