Waiting for a Visa | a book by Bhimrao Ambedkar

विदेश में लोगों को छुआछूत के बारे में पता तो है लेकिन इससे वास्तविक सामना नहीं पड़ने के कारण वे यह नहीं जान सकते कि दरअसल यह प्रथा कितनी दमनकारी है। उनके लिए यह समझ पाना मुश्किल है कि बड़ी संख्या में हिंदुओं के गाँव के एक किनारे कुछ अछूत रहते हैं, हर रोज़ गाँव का मैला उठाते हैं, हिंदुओं के दरवाज़े पर भोजन की भीख माँगते हैं, हिंदू बनिया की दुकान से मसाले और तेल ख़रीदते वक़्त कुछ दूरी पर खड़े होते हैं, गाँव को हर मायने में अपना मानते हैं और फिर भी गाँव के किसी सामान को कभी छूते नहीं या उसे अपनी परछाईं से भी दूर रखते हैं।

अछूतों के प्रति ऊँची जाति के हिंदुओं के व्यवहार को बताने का बेहतर तरीक़ा क्या हो सकता है। इसके दो तरीक़े हो सकते हैं। पहला, सामान्य जानकारी दी जाए या फिर दूसरा, अछूतों के साथ व्यवहार के कुछ मामलों का वर्णन किया जाए। मुझे लगा कि दूसरा तरीक़ा ही ज़्यादा कारगर होगा। इन उदाहरणों में कुछ मेरे अपने अनुभव हैं तो कुछ दूसरों के अनुभव। मैं अपने साथ हुई घटनाओं के ज़िक्र से शुरुआत करता हूँ।

बचपन में दुस्वप्न बनी कोरेगाँव की यात्रा

पश्चिम से लौटकर आने के बाद बड़ौदा में रहने की जगह नहीं मिली

चालिसगाँव में आत्मसम्मान, गँवारपन और गम्भीर दुर्घटना

दौलताबाद के किले में पानी को दूषित करना

डॉक्टर ने समुचित इलाज से मना किया जिससे युवा स्त्री की मौत हो गई

गाली-गलौज और धमकियों के बाद युवा क्लर्क को नौकरी छोड़नी पड़ी

 

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बाबा साहब भीमराव आम्बेडकर
भीमराव रामजी आम्बेडकर (14 अप्रैल, 1891 – 6 दिसंबर, 1956), बाबासाहब आम्बेडकर नाम से लोकप्रिय, भारतीय बहुज्ञ, विधिवेत्ता, अर्थशास्त्री, राजनीतिज्ञ, और समाजसुधारक थे। उन्होंने दलित बौद्ध आंदोलन को प्रेरित किया और अछूतों (दलितों) से सामाजिक भेदभाव के विरुद्ध अभियान चलाया था। श्रमिकों, किसानों और महिलाओं के अधिकारों का समर्थन भी किया था। वे स्वतंत्र भारत के प्रथम विधि एवं न्याय मंत्री, भारतीय संविधान के जनक एवं भारत गणराज्य के निर्माता थे।

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