अमृतलाल नागर (17 अगस्त, 1916 - 23 फरवरी, 1990) हिन्दी के सुप्रसिद्ध साहित्यकार थे। आपको भारत सरकार द्वारा १९८१ में साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था।
मैं उन इलाक़ों में गया
जहाँ मकान चुप थे
उनके ख़ालीपन को धूप उजला रही थी
हवा शान्त, मन्थर—
अपने डैने चोंच से काढ़ने को
बेचैन थी
लोग जा चुके हैं
उन्हें कुछ...
1
घर से निकलकर
कभी न लौट पाने का दुःख
समझने के लिए
तुम्हें होना पड़ेगा
एक नदी!
2
नदियों की निरन्तरता
को बाँध
उनका पड़ाव निर्धारित कर
मनुष्य ने देखा है
ठहरी हुई नदियों...
तुम्हारी आँखें
मखमल में लपेटकर रखे गए
शालिग्राम की मूरत हैं
और मेरी दृष्टि
शोरूम के बाहर खड़े
खिलौना निहारते
किसी ग़रीब बच्चे की मजबूरी
मैंने जब-जब तुम्हें देखा
ईश्वर अपने अन्याय...