आनंद की कोख से
जन्मा सुख दुःखी है
हमने गढ़ लिये हैं
भावनाओं के विलोम
सूरज दिन भर
उजाला रखता है
पर हमने ढूँढ ली है
चुभती पीली धूप
नुकीले पंजे
विदेह नीलांबर से
नोच लाते हैं
नीली देह
और हम अमावस के
तराजू में अंधेरे के
बाट रख तौलते हैं
पूनम के पाप
सितारे पहनकर
काला आसमाँ
फिर रंगता है
नीलगगन
अनंत का वजूद
हमारे सिराहने पड़े
आनंद के लक्षणों को
धिक्कारता है
सूरज में अस्त
हमारे सुख
चाँद में दुःख के दाग
लिये रोज उगते हैं !
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© मनोज मीक