चपरासी या क्लर्क जब करना पड़े तलाश,
पूछा जाता- क्या पढ़े, कौन क्लास हो पास?
कौन क्लास हो पास, विवाहित हो या क्वारे?
शामिल रहते हो या मात-पिता से न्यारे?
कह ‘काका’ कवि, छान-बीन काफ़ी की जाती,
साथ सिफारिश हो, तब ही सर्विस मिल पाती।

कर्मचारियों के लिए, हैं अनेक दुःख-द्वन्द्व,
नेताजी के वास्ते, एक नहीं प्रतिबन्ध।
एक नहीं प्रतिबन्ध, मंच पर झाड़ें लक्चर,
वैसे उनको भैंस बराबर काला अक्षर।
कह ‘काका’, दर्शन करवा सकता हूँ प्यारे,
एम. एल. ए. कई, ‘अँगूठा छाप’ हमारे।

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काका हाथरसी
काका हाथरसी (असली नाम: प्रभुलाल गर्ग) हिंदी हास्य कवि थे। उनकी शैली की छाप उनकी पीढ़ी के अन्य कवियों पर तो पड़ी ही, आज भी अनेक लेखक और व्यंग्य कवि काका की रचनाओं की शैली अपनाकर लाखों श्रोताओं और पाठकों का मनोरंजन कर रहे हैं।

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