तुम्हारे हाथों में थमे हुए ये धर्म-ध्वज
तुम्हारे होंठों पर चीख़ते हुए ये नारे
तुम्हारी चेतना में बैठे हुए भय के प्रतीक हैं
मैं प्रेम में तुम्हें सोलह आने आश्वस्त कर दूँगी
बस एक वादा करो
कि धर्म की किसी पताका से
मेरा आँचल बनाने का प्रयास नहीं करोगे
मेरे हृदय को नहीं समझोगे कोई देव-स्थल
मेरी देह को नहीं बनाओगे किसी देवी का उपमान
अपनी सत्ता के लिए प्रयुक्त तख़्त भी नहीं मानोगे
और हाँ, अपने राजनीतिक दल का
कोई कार्यकर्ता भी मत समझ लेना
मैं जीवन की विडम्बनाओं और दुःस्वप्नों से
भागकर नहीं आयी हूँ तुम्हारे पास
मैं तुम्हारे द्वारा अधिग्रहित किया गया
कोई भूमि का टुकड़ा भी नहीं हूँ
मैं तुम्हारे अन्तर्विरोधों का हल हूँ
याद रखना
हल के फाल भी होता है
फाल के धार भी होती है।
राहुल बोयल की कविता 'मृत्युबोध'