फैली धरती के सीने पे जंगल भी हैं लहलहाते हुए
और दरिया भी हैं दूर जाते हुए
और पर्वत भी हैं अपनी चुप में मगन
और सागर भी हैं जोश खाते हुए
उन पे छाया हुआ नीला आकाश है
नीले आकाश में नूर लाते हुए दिन को सूरज भी है
शाम जाने पे है चाँद से सामना
रात आने पे नन्हे सितारे भी हैं झिलमिलाते हुए
और कुछ भी नहीं
अब तक आई न आइंदा तो आएगी बस यही बात है
और कुछ भी नहीं
एक तू एक मैं दूर ही दूर हैं
आज तक दूर ही दूर हर बात होती रही
दूर ही दूर जीवन गुज़र जाएगा
लहर से लहर टकराए कैसे कहो
और साहिल से छू जाए कैसे कहो
लहर को लहर से दूर करती हुई बीच में सैंकड़ों और लहरें भी हैं
और कुछ भी नहीं
छाई मस्ती जो दिल पर मिरे भूल की
एक ही बात रह रह के कहता है
एक ही ध्यान के दर्द में दिल को लज़्ज़त मिली
आरज़ू की कली कब खिली
एक ही मौज पर मैं तो बहता रहा
अब तक आई न आइंदा तू आएगी
चाहे धरती के सीने पे जंगल न हों
चाहे पर्वत न हों चाहे दरिया न हों चाहे सागर न हों
नीले आकाश में चाँद-तारे न हों कोई सूरज न हो
रात-दिन हों न दुनिया में शाम-ओ-सहर
कोई पर्वा नहीं
एक ही ध्यान है
दूर ही दूर जीवन गुज़र जाएगा और कुछ भी नहीं..

Previous articleमुक्तिबोध – ‘एक साहित्यिक की डायरी’
Next articleराख उड़ी होगी जग में, नरमुण्ड कहीं बिखरे होंगे..
मीराजी
मीराजी (25 मई, 1912 - 3 नवंबर, 1949) में पैदा हुए. उनका नाम मुहम्मद सनाउल्ला सनी दार, मीराजी के नाम से मशहूर हुए. उर्दू के अक प्रसिद्द शायर (कवि) माने जाते हैं. वह केवल बोहेमियन के जीवन में रहते थे, केवल अंतःक्रियात्मक रूप से काम करते थे।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here