सौ में दस की भरी तिजोरी, नब्बे ख़ाली पेट
झुग्गीवाला देख रहा है साठ लाख का गेट।
बहुत बुरा है आज देश में
लोकतन्त्र का हाल,
कुत्ते खींच रहे हैं देखो
कामधेनु की खाल,
हत्या, रेप, डकैती, दंगा
हर धंधे का रेट।
…झुग्गीवाला देख रहा है साठ लाख का गेट।
बिकती है नौकरी यहाँ पर
बिकता है सम्मान,
आँख मूँदकर उसी घाट पर
भाग रहे यजमान,
जाली वीज़ा पासपोर्ट है
जाली सर्टिफ़िकेट।
…झुग्गीवाला देख रहा है साठ लाख का गेट।
लोग देश में खेल रहे हैं
कैसे-कैसे खेल,
एक हाथ में खुला लाइटर
एक हाथ में तेल,
चाहें तो मिनटों में कर दें
सब कुछ मटियामेट।
…झुग्गीवाला देख रहा है साठ लाख का गेट।
अंधी है सरकार-व्यवस्था
अंधा है क़ानून,
कुर्सीवाला देश बेचता
रिक्शेवाला ख़ून,
जिसकी उँगली है रिमोट पर
वो है सबसे ग्रेट।
…झुग्गीवाला देख रहा है साठ लाख का गेट।
कैलाश गौतम की कविता 'गाँव गया था, गाँव से भागा'