‘Iska Rona’, a poem by Subhadra Kumari Chauhan

तुम कहते हो – मुझको इसका रोना नहीं सुहाता है
मैं कहती हूँ – इस रोने से अनुपम सुख छा जाता है
सच कहती हूँ, इस रोने की छवि को जरा निहारोगे
बड़ी-बड़ी आँसू की बूँदों पर मुक्तावली वारोगे

ये नन्हे से होंठ और यह लम्बी-सी सिसकी देखो
यह छोटा सा गला और यह गहरी-सी हिचकी देखो
कैसी करुणा-जनक दृष्टि है, हृदय उमड़ कर आया है
छिपे हुए आत्मीय भाव को यह उभार कर लाया है

हँसी बाहरी, चहल-पहल को ही बहुधा दरसाती है
पर रोने में अंतर तम तक की हलचल मच जाती है
जिससे सोई हुई आत्मा जागती है, अकुलाती है
छुटे हुए किसी साथी को अपने पास बुलाती है

मैं सुनती हूँ कोई मेरा मुझको अहा! बुलाता है
जिसकी करुणापूर्ण चीख से मेरा केवल नाता है
मेरे ऊपर वह निर्भर है खाने, पीने, सोने में
जीवन की प्रत्येक क्रिया में, हँसने में ज्यों रोने में

मैं हूँ उसकी प्रकृति संगिनी उसकी जन्म-प्रदाता हूँ
वह मेरी प्यारी बिटिया है, मैं ही उसकी प्यारी माता हूँ
तुमको सुन कर चिढ़ आती है मुझ को होता है अभिमान
जैसे भक्तों की पुकार सुन गर्वित होते हैं भगवान..

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सुभद्राकुमारी चौहान
सुभद्रा कुमारी चौहान (16 अगस्त 1904 - 15 फरवरी 1948) हिन्दी की सुप्रसिद्ध कवयित्री और लेखिका थीं। उनके दो कविता संग्रह तथा तीन कथा संग्रह प्रकाशित हुए पर उनकी प्रसिद्धि झाँसी की रानी कविता के कारण है। ये राष्ट्रीय चेतना की एक सजग कवयित्री रही हैं, किन्तु इन्होंने स्वाधीनता संग्राम में अनेक बार जेल यातनाएँ सहने के पश्चात अपनी अनुभूतियों को कहानी में भी व्यक्त किया। वातावरण चित्रण-प्रधान शैली की भाषा सरल तथा काव्यात्मक है, इस कारण इनकी रचना की सादगी हृदयग्राही है।

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