माँ की आँखें
वो निश्छल, निर्गुण-सी आँखें
आँख कहाँ होती है
वो होती है
एक पात्र जलमग्न
अविरल जिसमें बहती है
ममतामयी धारा
और छलक आती है पल में
मोती-सी पावन बूँदें
जरा सी हलचल से भी…

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