‘Itihas Aur Vidooshak’, a poem by Nirmal Gupt

उनकी घिसी हुई पतलून
इधर-उधर से उधड़ी टीशर्ट देखकर
कोई अनुमान मत लगाओ

उनके उजड़े हुए बाल
और बिना धुले चेहरों से भी
कोई सुराग़ मत उठाओ,
उनकी कनपटी पर रेंगती जुओं को
वहीं रहने दो

उनकी बड़ी-बड़ी बातों में से
कोई राग-विराग मत खोजो,
ये सभी किसी न किसी वैचारिक ढाबे के
नौसिखिया ख़ानसामे हैं
उनके हाथों से ज़बह होने से पहले
मुर्ग़े छूट जाते हैं

उनके चाकू इतने खुट्टल हैं
कुछ भी एकबारगी नहीं कटता
ये इतिहास में दर्ज
विदूषकों की जमात है

इनसे कुछ न कहो
यदि सम्भव हो तो
इन पर तरस खाओ।

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निर्मल गुप्त
बंगाल में जन्म ,रहना सहना उत्तर प्रदेश में . व्यंग्य लेखन भी .अब तक कविता की दो किताबें -मैं ज़रा जल्दी में हूँ और वक्त का अजायबघर छप चुकी हैं . तीन व्यंग्य लेखों के संकलन इस बहुरुपिया समय में,हैंगर में टंगा एंगर और बतकही का लोकतंत्र प्रकाशित. कुछ कहानियों और कविताओं का अंग्रेजी तथा अन्य भाषाओं में अनुवाद . सम्पर्क : [email protected]