अनुवाद: पुर्तगाल के अज़ीम शायर जनाब ‘फेरनान्दो पेसोआ’ की नज़्म ‘ऑटोसाइकोग्राफी’

शायर वो आदमी है जो बहाने बनाता है
और इतनी शिद्दत से बहाने बनाता है कि आख़िरकार
उस दर्द के जैसे बहाना बनाने में कामयाब होता है
जो दर्द वो असल में महसूस करता है

और जो लोग उसे पढ़ते है, जो कुछ उसने एक बार लिखा
साफ़ तौर से महसूस करते है, जिस दर्द में उन्होंने पढ़ा
उसने में कोई भी उसने महसूस ही नहीं किया,
पर एक दर्द जिससे वो इत्तेफ़ाक़ नहीं रखते

और इस तरह, रेलमपेल रास्ते के चारो ओर
हमारे अक़्ल को मसरूफ़ रखने के लिए, दौड़ता है
गोल-गोल घूमता हमारा मशीनी पुरजा
जिसे लोग एक “दिल” कहने को राज़ी होते हैं।

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