“लगे इलज़ाम लाखो हैं कि घर से दूर निकला हूँ
तुम्हारी ईद तुम समझो, मैं तो बदस्तूर निकला हूँ।”
“तुम नहीं सुधरोगे ना? कोई घर ना जा पाने से दुखी है और तुम्हें व्यंग सूझ रहा है। ये नहीं कि झूठा ही सही चाँद मुबारक़ बोल देते, नहीं?”
“उफ़्फ़!! तुम तो बस शुरू हो जाती हो.. उर्दू नहीं देखी तुमने। अरे चाँद और उर्दू का बड़ा गहरा रिश्ता होता है। चाँद मुबारक़ बोलो या उर्दू में एक शेर कह दो, एक ही बात है।”
“तुम ना रहने दो, अपना फ़लसफ़ा अपने पास रखो, आई ऍम गोइंग।”
“अच्छा सुनो… एक बात तो सुनती जाओ…। सुनो तो..”
“बोलो।”
“तुम मुबारक़।।”