महाश्वेता देवी के उद्धरण | Mahasweta Devi Quotes in Hindi
“सपने देखने का अधिकार पहला मौलिक अधिकार होना चाहिए।”
“एक ही जीवन में मैंने कई बार जन्म लिया है।”
“मध्यवर्गीय नैतिकता से मुझे घृणा है। यह कितना बड़ा पाखण्ड है। सब कुछ दबा रहता है।”
“तुम लोग जिसे काम कहते हो, उनकी तुलना में ये तमाम बेकाम मुझे ज़्यादा उत्साहित करते हैं।”
“जब शबरों के पास गई, मेरे सारे सवालों के जवाब मिल गये। आदिवासियों पर जो भी लिखा है, उनके अन्दर से ही पाया है।”
“बिना इतिहास के कुछ नहीं होता। राजवृन्दों का इतिहास नहीं, बल्कि मैं जनसाधारण की दृष्टि से इतिहास को देखने की चेष्टा करती हूँ।”
“मैं अन्तिम वाक्य तक मनुष्यों के लिए बोलना चाहती हूँ। उन मनुष्यों की बात, जिनके सीने की हड्डी उभरी है, जो दुःखी हैं, मेहनती हैं।”
“साधारण मानव जीवन और मनुष्य के प्रति शुरू से ही मेरा आग्रह रहा है, शुरू से ही मेरी लेखनी में वे आते रहे हैं।”।
“सभी के पास अपनी माँ अनन्य होती है। मेरे लिए मेरी माँ धरती भी थी, नैतिक शक्ति, भोग-विलास से घृणा, सहिष्णुता, दूसरे के लिए निस्वार्थ आत्म त्याग, मेरी माँ के ये सारे गुण झलमल चमकते। ऐसी ऐश्वर्यमयी औरत मैंने आज तक नहीं देखी।”
“लेखकों को वहाँ और अधिक चौकस रहना पड़ता है, जहाँ अँधेरा कुण्डली मारे बैठा है। उसे वहाँ प्रकाश फैलाना होता है, अविवेक पर प्रहार और कशाघात करना होता है।”
“बाहर से बड़ी-बड़ी बातें बोलकर कुछ भी कार्य नहीं होता।”
“अतीत में न झाँककर मैं भविष्य की तरफ़ बढ़ती रहूँगी, मुझे बढ़ते ही रहना है। बार-बार मैं अपने को छोड़ के आगे बढ़ जाती हूँ। मुझे बढ़ना ही है।”
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