एक बूढ़ा सा डस्टर था,
कुछ उजली चॉक औंधे मुँह पड़ी थी,
एक अपाहिज कुर्सी,
पर वो अपने आप में अपराजिता थी
और काला-सा ब्लैक बोर्ड
एकदम काला-
मुरझा गया था
उसपे आड़ी-तिरछी रेखाओं में
“ब्रिहस्पतीवार” लिखा था
वो प्राथमिक विद्यालय का बोर्ड था
खिचड़ी और दलिया का दाग लगा हुआ
कुछ बच्चे जूठे हाथों से आईस-पाईस खेल रहे थे
दुनिया से विरक्त;
उनके अपने ही द्वीप में द्वेषरहित,
उन्हें क्या पता वो सब मज़दूर बनने जा रहे थे।