मोहब्बत की जमापूंजी से सिक्के भर बचा लेना
रहे जज़्बात न बाकी बड़ी मुश्किल में आओगे।
जफ़ा के रास्तों में मिल रहे कमरे किराये के
वफ़ा के तंग गलियारे में क्या तुम घर बनाओगे?
न पूरा खर्च हो जाना, ज़रा कीमत बढ़ा लेना
जो खाता हो गया खाली, मुफत में भी न जाओगे।
किसी भंवरे की फितरत है बगीचों में भटक जाना
हमें मालूम है तुम दोष फूलों पर लगाओगे।
हमें दूजे जनम के वस्ल का सबूत दो पक्का
अगर तुम जान लेकर ही मोहब्बत आजमाओगे
कड़कती धूप में तेरी ही खिल जाती ‘प्रहेलिका’
क्या खुद को ही डुबो करके मेरी हस्ती मिटाओगे?
अभी अपनी अना के वास्ते खामोश बैठे हैं
चले भी आएँगे गर उम्र भर को तुम बुलाओगे।