अनुवाद: साउथ कोरियाई शायर जनाब ‘को उन’ की नज़्म ‘आस्किंग द वे’

तुम सब जाहिल, पूछते हो कि ख़ुदा क्या है
बल्कि पूछना चाहिए कि ज़िन्दगी क्या है
उस बंदरगाह को ढूँढों जहाँ नींबू के दरख़्त पनपे हैं
बंदरगाह पे पीने की जगहों के बारे में पूछो
पीने वालों के बारे में पूछो
नींबू के दरख़्तों के बारे में पूछो
पूछो और पूछते रहो कि जब तक कुछ भी नहीं,
पूछने को रह जाता।

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