रोटी नाम सत है
खाए से मुगत है

ऐरावत पर इन्दर बैठे
बाँट रहे टोपियाँ
झोलियाँ फैलाए लोग
भूग रहे सोटियाँ
वायदों की चूसणी से
छाले पड़े जीभ पर
रसोई में लाव-लाव भैरवी बजत है
रोटी नाम सत है
खाए से मुगत है

बोले खाली पेट की
करोड़ करोड़ कूंडियाँ
खाकी वरदी वाले भोपे
भरे हैं बन्दूकियाँ
पाखण्ड के राज को
स्वाहा-स्वाहा होम दे
राज के बिधाता सुण तेरे ही निमत्त है
रोटी नाम सत है
खाए से मुगत है

बाजरी के पिण्ड और
दाल की बैतरणी
थाली में परोसले
हाँ, थाली में परोसले
दाता जी के हाथ
मरोड़कर परोसले
भूख के धरमराज यही तेरा ब्रत है
रोटी नाम सत है
खाए से मुगत है!

हरीश भादानी की कविता 'तेरी मेरी ज़िन्दगी का गीत एक है'

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हरीश भादानी
(11 जून 1933 - 2 अक्टूबर 2009)

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