तुम्हारी नज़र में हम
आदमी नहीं
सीढ़ी के डण्डे भर रह गए हैं
जिन पर पाँव धर-धरकर
सत्ता की आलिशान इमारत पर
चढ़ जाते हो
फिर, उन्हें भारी जूते वाले
पैर की ठोकर मारकर
ज़मीन पर पटक
आगे बढ़ जाते हो।

मगर सावधान!
ज़रा सम्भलकर मारना ठोकर
जूते की रगड़ चिंगारी को जन्म दे जाती है
जो लपट बन जाने पर
क़ाबू में नहीं आती है
भस्म हो जाएगी यह इमारत
जिसकी गर्म राख में भुन जाओगे
बैंगन-से।

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