एक शहर को
कुहासे के भीतर से
देखना अच्छा लगता है
जब
भागता हुआ शहर
सिकुड़कर
छोटा हो जाता है और
थम जाता है
कुछ देर के लिए

शहर जानता है
कुहासे का छँटना और
भागना
एक नये रूप में

भागते चेहरों पर
शहर की थकन होती है

और
चेहरे की नमी सोखते
शहर को
देख सकोगे तुम

एक ख़त्म होती रात में
शहर जाग जाता है…

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