वे दौड़ते हैं
यहां से वहां
वहां से यहां
कि लम्बे अंधियारों के बाद
सुबह हो जाए।
मगर इस अनंत भाग-दौड़ में
सूरज बरकरार उगा
चिड़ियाएं चहकीं
गुलाब महके।
पर वे अपने आंगन में
एक किरण उतारने
एक गुलाब खिलाने की कला में
हर बार चूक गये।
क्योंकि हर बार जब वे होश में आए
तब तक दिन ढल चुका था
रोशनी को अंधियार निगल चुका था
पर खत्म नहीं होती है कहीं सुबह की तलाश।

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