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वो बात जिस से ये डर था खुली तो जाँ लेगी
वो बात जिस से ये डर था खुली तो जाँ लेगी
सो अब ये देखिए जा के वो दम कहाँ लेगी
मिलेगी जलने से फ़ुर्सत हमें...
असली बात
विभाजन, फिर से एक और कहानी प्रस्तुत है इसी विषय पर.. भारतीय साहित्यकारों ने मुश्किल ही इस त्रासदी का कोई भी पहलू अनछुआ छोड़ा होगा.. उन दिनों में जब दंगे हुआ करते थे तो उससे बचने के लिए कर्फ्यू लगा दिया जाता था, लेकिन वो कर्फ्यू केवल कहीं आने-जाने पर प्रतिबन्ध न होकर, खाने-पीने और जीने तक पर एक रोक के रूप में उभर कर आता था, खास तौर से उनके लिए जो रोज़ कमाने-खाने वाले हों.. ऐसे में उन दो वर्गों ने जहाँ-जहाँ नफरत भूलकर सोहार्द को नहीं अपनाया, वहां केवल नुकसान ही हुआ.. जान और माल दोनों का!
पढ़िए नासिरा शर्मा की यह कहानी 'असली बात'!
स्वर्ग दूत से (ऐसी क्या बात है)
ऐसी क्या बात है, चलता हूँ अभी चलता हूँ
गीत एक और ज़रा झूम के गा लूँ तो चलूँ!
भटकी-भटकी है नज़र, गहरी-गहरी है निशा
उलझी-उलझी है...
मतलब की बात
एक पंडित जी अपने लड़के को पढ़ा रहे थे..
'मातृवत् परदारेषु' - "पर स्त्री को अपनी माँ के बराबर समझें।"
लड़का मूर्ख था कहने लगा- "तो क्या पिता जी, आप मेरी स्त्री को माता के तुल्य समझते हैं?"
आज बात करते हैं ‘तख़ल्लुस’ की..
आज बात करते हैं 'तख़ल्लुस' की - तसनीफ़ हैदर
तख़ल्लुस असल में ऐसे नाम को कहते हैं जिसे शायर अपनी ग़ज़ल के मक़्ते (आख़री शेर)...
बात बोलेगी
बात बोलेगी,
हम नहीं।
भेद खोलेगी
बात ही।
सत्य का मुख
झूठ की आँखें
क्या देखें!
सत्य का रुख़
समय का रुख़ हैः
अभय जनता को
सत्य ही सुख है
सत्य ही सुख।
दैन्य दानव; काल
भीषण;...
आख़िरी बातचीत
पिताजी बहुत मुश्किल से ही साँस ले पा रहे थे। यहाँ तक कि उनकी सीने की धड़कन भी मुझे सुनाई नहीं दे रही थी।...
मन की बात
"सुनो।"
"हाँ।"
"अगर मेरे लिए कोई मन्दिर बनाकर उसमें मेरी मूर्ति रखे, तो मुझे तो बहुत अच्छा लगे।"
"पर ऐसे पूजने वाले ज्यादा हो जायेंगे और प्यार...