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Saadat Hasan Manto

1919 की एक बात

"उन्होंने अपनी ज़र्क़-बर्क़ पिशवाज़ें नोच डालीं और अलिफ़ नंगी हो गईं और कहने लगीं... लो देख लो... हम थैले की बहनें हैं... उस शहीद की जिसके ख़ूबसूरत जिस्म को तुमने सिर्फ़ इसलिए अपनी गोलियों से छलनी-छलनी किया था कि उसमें वतन से मोहब्बत करने वाली रूह थी..." आज जलियाँवाला बाग हत्याकांड को सौ वर्ष हो गए हैं! ऐसे निर्मम हत्याकांडों में मौत के सरकारी और वास्तविक आकड़ों के परे भी ऐसी यातनाएँ होती हैं जो केवल पीड़ित लोगों ने देखी हैं.. मंटो की यह कहानी उन्हीं यातनाओं की एक झलक पाठकों के सामने रखती है.. पढ़िए!
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बात और जज़्बात

1 हर तारा यही कहता है काली रात से कि थमी रहो चमकना है कुछ देर अभी और...! 2 हर रोज़ सवेरे मैं उजालों को पहन लेता हूँ और निखार लेता हूँ खुद...
Altaf Hussain Hali

बात कुछ हम से बन न आई आज

बात कुछ हम से बन न आई आज बोल कर हम ने मुँह की खाई आज चुप पर अपनी भरम थे क्या क्या कुछ बात बिगड़ी बनी...
Kirti Chaudhary

केवल एक बात

केवल एक बात थी कितनी आवृत्ति, विविध रूप में कर के निकट तुम्हारे कही। फिर भी हर क्षण, कह लेने के बाद, कहीं कुछ रह जाने की पीड़ा बहुत सही। उमग-उमग...
The Book of Questions - Pablo Neruda

नेरूदा के सवालों से बातें – IV

अनुवाद: पुनीत कुसुम स्वर्ग में, एक गिरिजाघर है हर एक उम्मीद के लिए और हर उस उम्मीद के लिए जो अधूरी रही, एक गिरिजाघर है शार्क नहीं करती...
Devendra Satyarthi

परियों की बातें

मैं अपने दोस्त के पास बैठा था। उस वक़्त मेरे दिमाग़ में सुक़्रात का एक ख़याल चक्कर लगा रहा था— क़ुदरत ने हमें दो...
Moon, Night, Silhouette, Girl

बातों की पीली ओढ़नी

सुनो चाँद... उस रात जब तुम आसमान में देर से उठे, मैं बैठी थी वहीं किसी चौराहे पर शब्दों की, मात्राओं की और उनमें उलझी मुड़ी...
Safi Lakhnavi

जाना जाना जल्दी क्या है इन बातों को जाने दो

जाना जाना जल्दी क्या है, इन बातों को जाने दो ठहरो ठहरो दिल तो ठहरे, मुझ को होश में आने दो पाँव निकालो ख़ल्वत से, आए...
The Book of Questions - Pablo Neruda

नेरूदा के सवालों से बातें – III

अनुवाद: पुनीत कुसुम मैं बताती हूँ, न ही गुलाब नग्न है, न पहने हैं कपड़े गुलाब ने लेकिन केवल इंसान का दिल ही कर सकता है...
Dagh Dehlvi

ये बात बात में क्या नाज़ुकी निकलती है

ये बात-बात में क्या नाज़ुकी निकलती है दबी-दबी तिरे लब से हँसी निकलती है ठहर-ठहर के जला दिल को, एक बार न फूँक कि इसमें बू-ए-मोहब्बत अभी...
The Book of Questions - Pablo Neruda

नेरूदा के सवालों से बातें

अनुवाद: पुनीत कुसुम नेरूदा के सवालों से बातें - III नेरूदा के सवालों से बातें - IV

हक़ की बात

कोई भी सबके हक़ के बाबत कैसे बोल सकता है? जंगलों के हक़ माँगने वाले स्वतः भूल जाते हैं― ईमारतों के हक़, रोज़गार और मौक़ों की ख़ातिर अपने शहरों...
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