1

हर तारा
यही कहता है
काली रात से
कि थमी रहो

चमकना है
कुछ देर अभी और…!

2

हर रोज़ सवेरे मैं उजालों को
पहन लेता हूँ और निखार लेता हूँ खुद को
निकल पड़ता हूँ फिर से काली सड़कों पर….

फिर से उजालों की तलाश में..!!

3

भावनाएँ ओस की बूँदें हैं
घास के तिनकों पर
बस क्षण भर को…
लुप्त हो जाती हैं
सूरज के चले आने से..!!
क्षण भर की चाहतों
की पगडंडियों से निकलती हैं
जीवन को छूने वाली
लम्बी सड़कें
जो कभी सपाट होती हैं
तो कभी पथरीली और रेतीली भी…

4

सूरज की किरनों को
अपनी कलाई से बाँध कर
दिन का सफर शुरू करना और
पूरा दिन उन्हीं किरनों के तेज़ में
तपना
पिघलना…

तरसेम कौर
A freelancer who loves to play with numbers and words.