Tag: Chandrakant Devtale

Chandrakant Devtale

अपने को देखना चाहता हूँ

मैं अपने को खाते हुए देखना चाहता हूँ किस जानवर या परिन्दे की तरह खाता हूँ मैं मिट्ठू जैसे हरी मिर्च कुतरता है या बन्दर गड़ाता है...
Chandrakant Devtale

पुनर्जन्म

मैं रास्ते भूलता हूँ और इसीलिए नए रास्ते मिलते हैं मैं अपनी नींद से निकलकर प्रवेश करता हूँ किसी और की नींद में इस तरह पुनर्जन्म होता रहता...
Chandrakant Devtale

स्त्री के साथ

मैं आकाश में इतने ऊपर कभी नहीं उड़ा कि स्त्री दिखायी ही न दे इसलिए मैं उन लोगों के बारे में कुछ नहीं जानता कि वे किस तरह...
Chandrakant Devtale

तुम्हारी आँखें

ज्वार से लबालब समुद्र जैसी तुम्हारी आँखें मुझे देख रही हैं और जैसे झील में टपकती हैं ओस की बूँदें तुम्हारे चेहरे की परछाईं मुझमें प्रतिक्षण और यह सिलसिला...
Chandrakant Devtale

तुम वहाँ भी होंगी

अगर मुझे औरतों के बारे में कुछ पूछना हो तो मैं तुम्हें ही चुनूँगा तहक़ीक़ात के लिए यदि मुझे औरतों के बारे में कुछ कहना हो तो मैं...
Chandrakant Devtale

घर में अकेली औरत के लिए

तुम्हें भूल जाना होगा समुद्र की मित्रता और जाड़े के दिनों को जिन्हें छल्ले की तरह अँगुली में पहनकर तुमने हवा और आकाश में उछाला था, पंखों में बसन्त...
Chandrakant Devtale

एक सपना यह भी

सुख से, पुलकने से नहीं रचने-खटने की थकान से सोयी हुई है स्त्री सोयी हुई है जैसे उजड़कर गिरी सूखे पेड़ की टहनी अब पड़ी पसरकर मिलता जो सुख वह...
Chandrakant Devtale

मैं आता रहूँगा तुम्हारे लिए

मेरे होने के प्रगाढ़ अन्धेरे को पता नहीं कैसे जगमगा देती हो तुम अपने देखने भर के करिश्मे से कुछ तो है तुम्हारे भीतर जिससे अपने बियाबान सन्नाटे को तुम...
Chandrakant Devtale

माँ पर नहीं लिख सकता कविता

माँ के लिए सम्भव नहीं होगी मुझसे कविता अमर चिऊँटियों का एक दस्ता मेरे मस्तिष्क में रेंगता रहता है माँ वहाँ हर रोज़ चुटकी-दो-चुटकी आटा डाल देती...
Chandrakant Devtale

माँ जब खाना परोसती थी

वे दिन बहुत दूर हो गए हैं जब माँ के बिना परसे पेट भरता ही नहीं था, वे दिन अथाह कुएँ में छूटकर गिरी पीतल की चमकदार...
Chandrakant Devtale

अन्तिम प्रेम

हर कुछ कभी न कभी सुन्दर हो जाता है बसन्त और हमारे बीच अब बेमाप फ़ासला है तुम पतझड़ के उस पेड़ की तरह सुन्दर हो जो बिना...
Chandrakant Devtale

औरत

वह औरत आकाश और पृथ्वी के बीच कब से कपड़े पछीट रही है पछीट रही है शताब्दिशें से धूप के तार पर सुखा रही है, वह औरत आकाश और...
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