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राजकमल चौधरी
सोहर की पंक्तियों का रस
(चमड़े की निर्जनता को गीला करने के लिए)
नये सिरे से सोखने लगती हैं
जाँघों में बढ़ती हुई लालचे से
भविष्य के रंगीन...
कविता
उसे मालूम है कि शब्दों के पीछे
कितने चेहरे नंगे हो चुके हैं
और हत्या अब लोगों की रुचि नहीं –
आदत बन चुकी है
वह किसी गँवार...
गाँव
'Gaon', a poem by Sudama Pandey Dhoomilमूत और गोबर की सारी गंध उठाए
हवा बैल के सूजे कंधे से टकराए
खाल उतारी हुई भेड़-सी
पसरी छाया नीम...
अकाल-दर्शन
Akal Darshan | Hindi Kavita by Dhoomilभूख कौन उपजाता है—
वह इरादा जो तरह देता है
या वह घृणा जो आँखों पर पट्टी बाँधकर
हमें घास की...
मोचीराम
Mochiram | a poem by Dhoomilराँपी से उठी हुई आँखों ने मुझे
क्षण-भर टटोला
और फिर
जैसे पतियाये हुए स्वर में
वह हँसते हुए बोला—
बाबूजी! सच कहूँ— मेरी...
नक्सलबाड़ी
'सहमति...
नहीं, यह समकालीन शब्द नहीं है
इसे बालिग़ों के बीच चालू मत करो'
—जंगल से जिरह करने के बाद
उसके साथियों ने उसे समझाया कि भूख
का इलाज नींद...
मुनासिब कार्रवाई
अकेला कवि कठघरा होता है
इससे पहले कि 'वह' तुम्हें
सिलसिले से काटकर अलग कर दे
कविता पर
बहस शुरू करो
और शहर को अपनी ओर
झुका लो।
यह सबूत के...
धूमिल की अन्तिम कविता
कविता संग्रह 'कल सुनना मुझे' सेशब्द किस तरह
कविता बनते हैं
इसे देखो
अक्षरों के बीच गिरे हुए
आदमी को पढ़ो
क्या तुमने सुना कि यह
लोहे की आवाज़ है...
‘कविता’ पर कविताएँ
जब कविताएँ पढ़ते या लिखते हुए कुछ समय बीत जाता है तो कोई भी पाठक या कविता-प्रेमी अनायास ही कभी-कभी कुछ ऐसे सवालों में...