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उसने तो नहीं कहा था
चंद्रधर शर्मा गुलेरी की कहानी 'उसने कहा था' में एक सिपाही युद्ध के मैदान में भी अपने प्रेम वचनों को याद रखता है, लेकिन शैलेश मटियानी की इस कहानी में किसी वचन का कोई बंधन नहीं था, फिर भी प्रेम सर्वोपरि रहा! इर्ष्या, क्रोध, असुरक्षा सभी को दरकिनार करता प्रेम! यह कहानी एक उदाहरण भी है कि कैसे एक रचना किसी दूसरी उत्कृष्ट रचना की प्रेरणा बन सकती है!
कुत्ते की पूँछ
"मनुष्यता का चस्का एक दफे लग जाने पर किसी को जानवर बनाये रखना भी तो सम्भव नहीं।"
क्या कभी आपके साथ ऐसा हुआ है कि किसी से दोस्ती करके या किसी को अपने जीवन में जगह देकर आपने बड़ा महसूस किया हो? और बाद में उस व्यक्ति के आपसे खुलते जाने पर आपको अफ़सोस भी हुआ हो? यदि हाँ, तो यह कहानी बेसब्री से आपका इंतज़ार कर रही है!
एक चोर की कहानी
"राजा बलि ने कहा कि राजा युधिष्ठिर को चाहिए कि वे खुद दंड लें। बामन को दंड नहीं होगा। जिस राजा के राज में पेट की खातिर चोरी करनी पड़े वह राजा दो कौड़ी का है। उसे दंड मिलना चाहिए..।"
लेकिन आज तो पेट की खातिर इंसानों को आत्महत्या करते देखकर भी राजा के कान पर जूँ तक नहीं रेंगती! वो शायद इसलिए कि उनके बचपन में उन्हें ऐसी कहानियाँ नहीं सुनाई गयीं। आप अपने बच्चों को सुनाइए, पढ़ाइए.. क्या खबर वो कल किस पद तक पहुंचे?!
उसने कहा था
'तेरी कुड़माई हो गई?' का जवाब मिला 'धत!' और युद्ध के मैदान में भी प्रेम वचनों को याद रखा गया। ज़बान पीने को पानी माँगती रही तो मन बार-बार दोहराता रहा 'उसने कहा था'।
कमाल की प्रेम-कहानी
कमाल ने पूछा, "क्या तुम झुकोगी?"
लतीफह ने कहा, “क्या तुम उस झुकाव की कीमत पर खुद झुककर उस झुके हुए पन को अपने हृदय से लगाओगे?”
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तुर्की के राष्ट्रपति से एक खबरी का प्रेम और फिर प्रेम और शासन का द्वंद्व! जहाँ 'पुष्प की अभिलाषा' जैसी कविताएँ आज भी हमारा मन राष्ट्र-प्रेम से भर देती हैं, वहीं माखनलाल चतुर्वेदी की यह कहानी, प्रेम को शासन से एक हाथ ऊपर रख कर देखती है। पढ़िए :)
लवर्स
"मेरे एक हाथ में सिगरेट है, जिसे मैंने अभी तक नहीं जलाया। दूसरा हाथ टाँगों के नीचे दबा है। मैं आगे झुककर उसे दबाता हूँ। मुझे लगता है, जब तक वह मेरे बोझ के नीचे बिलकुल नहीं भिंच जाएगा तब तक ऐसे ही काँपता रहेगा।"
टोबा टेक सिंह
'टोबा टेक सिंह' - सआदत हसन मंटो
बंटवारे के दो-तीन साल बाद पकिस्तान और हिंदुस्तान की सरकारों को ख्याल आया कि साधारण कैदियों की तरह...
सिक्का बदल गया
जब सिक्का बदल गया, यानी सत्ता बदल गयी तो लोगों का देश, पिंड और समाज भी बदल गया। एक नयी वफादारी उन पर थोप दी गयी और जो कुछ भी उनका अपना था, सब छीन लिया गया।
कृष्णा सोबती की यह कहानी बँटवारे और विस्थापन का दुर्भाग्य झेलते लोगों की वेदना और असहाय परिस्थितियों का चित्रण करती है और उनकी सर्वोच्च कहानियों में से एक है।
एक दिन का मेहमान
"वह अंग्रेजी में 'यू' कहती थी, जिसका मतलब प्यार में 'तुम' होता था और नाराजगी में 'आप'। अंग्रेजी सर्वनाम की यह संदिग्धता बाप-बेटी के रिश्ते को हवा में टाँगे रहती थी, कभी बहुत पास, कभी बहुत पराया!"
चीफ की दावत
आज मिस्टर शामनाथ के घर चीफ की दावत थी।
शामनाथ और उनकी धर्मपत्नी को पसीना पोंछने की फुर्सत न थी। पत्नी ड्रेसिंग गाउन पहने, उलझे...
फाँसी
"न्यायी को ऐसा कार्य करने का क्या अधिकार है, जिसमें यदि भूल हो तो उसका सुधार भी उसके वश में न रहे।"
फांसी को ह्यूमन राइट एक्टिविस्ट्स के चोचले की दुर्भाग्यपूर्ण संज्ञा मिलने से पहले भी जाने कितने साहित्यकार इसके विरोध में लिख चुके हैं। उन्हीं में से एक है विश्वम्भरनाथ शर्मा कौशिक की यह कहानी 'फांसी'। पढ़िए। :)
हार की जीत
'हार की जीत' - सुदर्शन
माँ को अपने बेटे और किसान को अपने लहलहाते खेत देखकर जो आनंद आता है, वही आनंद बाबा भारती को...