Tag: Hindi poetry
तमाशा
उन्मादकता की शुरूआत हो जैसे
जैसे खुलते और बन्द दरवाज़ों में
खुद को गले लगाना हो
जैसे कोनों में दबा बैठा भय
आकर तुम्हारे हौसलों का माथा चूम जाए
जैसे...
‘शदायी केह्न्दे ने…’ – रमेश पठानिया की कविताएँ
आधुनिक युग का आदमियत पर जो सबसे बड़ा दुष्प्रभाव पड़ा है वो है इंसान से उसकी सहजता छीन लेना। थोपे हुए व्यवसाए हों या...
स्वयं हेतु
अनुवाद: पुनीत कुसुम
एक
मैं अपनी डायरी में कुछ बेतरतीब शब्द लिखती हूँ
और कहती हूँ उसे बाइबिल
जिसमें 'प्रेम' अन्तिम शब्द है
दो
'यकीन' जैसे शब्दों के नीचे मैं...
कहते हो.. प्यार करते हो.. तो मान लेती हूँ
तुम कहती हो
"कहते हो.. प्यार करते हो.. तो मान लेती हूँ"
मगर, क्यों मान लेती हो?
आख़िर, क्यों मान लेती हो?
पृथ्वी तो नहीं मानती अपने गुरुत्व...
खजूर बेचता हूँ
न सीने पर हैं तमगे
न हाथों में कलम है
न कंठ में है वीणा
न थिरकते कदम हैं
इस शहर को छोड़कर
जिसमें घर है मेरा
उस ग़ैर मुल्क...
पथिक
चलते-चलते रुक जाओगे किसी दिन,
पथिक हो तुम,
थकना तुम्हारे न धर्म में है
ना ही कर्म में,
उस दिन तिमिर जो अस्तित्व को
अपनी परिमिति में घेरने लगेगा,
छटपटाने...
हम अनंत तक जाएँगे
'Hum Anant Tak Jaenge', poetry by Shiva
आज या कल?
सत्य वह है जो आज है?
या वह जो कल था?
सत्य वह भी हो सकता है
जो कल...
बच्चन की त्रिवेणी – मधुशाला, मधुबाला, मधुकलश
आलोचना अच्छी है, अगर करनी आती हो। और अगर लेनी आती हो तो और भी। लेकिन अक्सर देखा जाता है कि न तो कोई...
रामधारी सिंह ‘दिनकर’ की प्रेम कविताएँ
अमूमन रामधारी सिंह 'दिनकर' का नाम आते ही जो पंक्तियाँ किसी भी कविता प्रेमी की ज़बान पर आती हैं, वे या तो 'कुरुक्षेत्र' की...
सर्वेश्वरदयाल सक्सेना का जूता, मोजा, दस्ताने, स्वेटर और कोट
जूता, मोजा, दस्ताने, स्वेटर और कोट- ये सब चीज़ें कपड़ों की किसी अलमारी से नहीं, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना के कविता संग्रह 'खूटियों पर टंगे लोग' के पन्नों...